अखिलेश यादव का बयान — परंपरा बनाम व्यवहारिकता की बहस

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समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने हाल ही में एक बयान देकर चर्चा का विषय बना दिया है। उन्होंने दीपावली के अवसर पर दीयों और मोमबत्तियों पर होने वाले खर्च को “गैरजरूरी” बताया और कहा कि इन पैसों को समाज के कमजोर वर्गों की मदद में लगाया जाना चाहिए। सपा कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिया गया यह सुझाव तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों के बीच बहस का मुद्दा बन गया।

एक पक्ष का मानना है कि अखिलेश यादव का सुझाव समय की मांग है। आज जब समाज में गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं, तो अनावश्यक खर्च को कम करके समाजहित में लगाना एक जिम्मेदार कदम हो सकता है। उनका तर्क है कि असली रोशनी तभी है जब हर घर में खुशहाली और समानता फैले।

वहीं, दूसरी ओर कई लोग इसे भारतीय परंपराओं का अपमान मान रहे हैं। दीपावली को प्रकाश पर्व कहा जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। ऐसे में दीये जलाना केवल खर्च नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति है।

कुछ लोग इसे एक “विचार योग्य सुझाव” मानते हैं—न पूरी तरह सही, न पूरी तरह गलत। वे कहते हैं कि परंपरा को निभाते हुए भी समाज के जरूरतमंदों की सहायता के रास्ते खोजे जा सकते हैं।


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