मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 4:3 की बहुमत से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बकरार रखा।
CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान को बरकरार रखने के पक्ष में थे। SC ने संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में फैसला दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने आज अलीगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बकरार रखा है। 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने से मना कर दिया गया था। जिसके बाद विश्वविद्यालय में 1967 के आदेश को पलटने की तैयारी शुरू हो गयी थी। जिस पर मौजूदा BJP सरकार ने विरोध भी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन सदस्यों की एक टीम नियुक्त की जायेगी जो यह जांच करेगी की क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का गठन अल्पसंख्यकों को अच्छी शिक्षा और बढ़ावा देने के लिए खोला गया था।
क्या है पुरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने 1 फरवरी को एएमयू की अल्पसंख्यक स्थिति पर सुनवाई करते हुए कहा कि 1981 के एएमयू अधिनियम में किया गया संशोधन अधूरा था और इससे संस्थान की 1951 से पहले की स्थिति बहाल नहीं हुई। इससे पहले एनडीए सरकार ने 1981 के संशोधन को मान्यता देने से इंकार किया और 1967 में संविधान पीठ के फैसले का पालन करने पर जोर दिया, जिसमें एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय मानते हुए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना गया था।
2005 में एएमयू ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 50% सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कीं, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और खारिज कर दिया गया। एएमयू ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसे बाद में एनडीए सरकार ने 2016 में वापस ले लिया, पर एएमयू ने चुनौती जारी रखी।
अल्पसंख्यक दर्जे के समर्थकों का तर्क था कि शासी परिषद में केवल 37 मुस्लिम सदस्यों से इसकी पहचान पर असर नहीं पड़ता। जबकि तुषार मेहता ने कहा कि एक केंद्रीय वित्त पोषित संस्थान किसी विशेष धार्मिक पहचान का दावा नहीं कर सकता।
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