बिहार में सीटों का संग्राम: कुर्सी की जंग में हर दल अड़ा

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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान होने से पहले ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही गठबंधनों में सीटों का बंटवारा अभी तय नहीं हो पाया है। पटना से दिल्ली तक बैठकों, मुलाक़ातों और रणनीतिक चर्चाओं का दौर जारी है, लेकिन हर दल अपनी मांग पर अड़ा हुआ है और कोई पीछे हटने को तैयार नहीं। इस समय बिहार की सियासत में कुर्सी और सत्ता की जंग चरम पर है, और हर छोटी- बड़ी पार्टी अपने हिस्से की ताकत बढ़ाने में जुटी हुई है।

एनडीए में सीटों का पेच

एनडीए में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी की डिमांड ने सीटों के समीकरण को और जटिल बना दिया है। चिराग ने स्पष्ट किया है कि उन्हें उतनी ही सीटें चाहिए जितनी उन्होंने मांगी हैं, और इससे कम पर वे समझौता नहीं करेंगे। जीतनराम मांझी भी 15 सीटों से कम पर किसी तरह का समझौता स्वीकार नहीं कर रहे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता नित्यानंद राय और धर्मेंद्र प्रधान चिराग को मनाने के लिए लगातार दिल्ली से पटना और पटना से दिल्ली दौड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय सामने नहीं आया। बड़े घटक दल, बीजेपी और जेडीयू, अपनी कुल 205 सीटों को सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं छोटे सहयोगियों को संतुष्ट करने के लिए कुछ सीटों की कुर्बानी देने की योजना बना रहे हैं।

महागठबंधन में सीटों की खींचतान

विपक्षी महागठबंधन में भी सीटों का समीकरण सुलझने से अभी दूर है। तेजस्वी यादव के घर लगातार कई दौर की बैठकें हो रही हैं। मुकेश सहनी अपनी पार्टी के लिए 40 सीटें और डिप्टी सीएम की मांग पर अड़े हैं, लेफ्ट दल कम से कम 30 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस अपनी 70 सीटों की डिमांड पर कायम है। सीएम फेस के मामले में आरजेडी और अन्य सहयोगी तेजस्वी यादव को समर्थन दे चुके हैं, लेकिन कांग्रेस अभी भी सीटों के समीकरण को लेकर दबाव बनाए रखना चाहती है। राबड़ी देवी के आवास पर भी उम्मीदवारों और सीटों के बंटवारे पर मंथन जारी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया।


कुल मिलाकर, बिहार की सियासत में अब कुर्सी की जंग और सीटों की खींचतान चरम पर है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही गठबंधन अपने सहयोगियों को खुश करने और सत्ता में संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। अब सवाल सिर्फ यह है कि कुर्बानी कौन देगा और कौन बनेगा इस चुनाव का असली विजेता। राजनीतिक महाभारत में जनता की निगाहें बस यही देख रही हैं कि कौन किसके आगे झुकेगा और कौन अपनी मांगों पर अड़ा रहेगा।

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