घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव की तारीख तय हो गई है। चुनाव आयोग ने सोमवार को ऐलान किया कि 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे। पूर्व शिक्षा मंत्री और घाटशिला के विधायक रामदास सोरेन के निधन के बाद हो रहे इस उपचुनाव में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आमने-सामने होंगी। यह मुकाबला सिर्फ दो दलों के बीच नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की साख का भी इम्तिहान बन गया है।
JMM की अहम बैठक 15 अक्टूबर को
उपचुनाव की घोषणा के तुरंत बाद मुख्यमंत्री और जेएमएम के केंद्रीय अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने 15 अक्टूबर को पार्टी की विस्तारित बैठक बुलाई है। यह बैठक सुबह 11 बजे रांची के हरमू स्थित सोहराई भवन में होगी। इसमें पार्टी की केंद्रीय समिति के पदाधिकारी, सदस्य, सभी जिलाध्यक्ष, सचिव, महानगर अध्यक्ष और संयोजक शामिल होंगे।
बैठक में घाटशिला उपचुनाव की रणनीति, बिहार विधानसभा चुनाव, सांगठनिक स्थिति, वर्तमान राजनीतिक माहौल और सदस्यता अभियान की समीक्षा की जाएगी।
दो “सोरेन” आमने-सामने?
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि जेएमएम की ओर से दिवंगत विधायक रामदास सोरेन के बेटे सोमेश सोरेन को टिकट दिया जा सकता है, जबकि बीजेपी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन मैदान में उतर सकते हैं। हालांकि अभी तक किसी पार्टी ने आधिकारिक घोषणा नहीं की है।
2024 के विधानसभा चुनाव में रामदास सोरेन ने बाबूलाल सोरेन को 22 हजार से अधिक वोटों से हराया था। ऐसे में इस बार बीजेपी के लिए सहानुभूति लहर को रोकना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
जयराम महतो का रुख बनेगा निर्णायक
इस उपचुनाव में जयराम महतो और उनकी पार्टी JLKM की भूमिका भी अहम रहेगी। पिछले चुनाव में उनके उम्मीदवार को लगभग आठ हजार वोट मिले थे, जो परिणाम को प्रभावित करने वाला आंकड़ा था। अब सवाल यह है कि क्या जेएलकेएम इस बार उम्मीदवार उतारेगी या नहीं।
डुमरी उपचुनाव में पार्टी ने उम्मीदवार नहीं दिया था और जेएमएम की बेबी देवी ने वहां जीत हासिल की थी। इस बार हालांकि परिस्थिति अलग है — न तो दिवंगत विधायक के परिवार के किसी सदस्य को मंत्री बनाया गया है, और न ही कोई स्पष्ट समझौते के संकेत हैं।
सूत्रों के मुताबिक, NDA जयराम महतो को अपने पाले में लाने की कोशिश में है, मगर उन्होंने अब तक उपचुनाव को लेकर कोई रुख साफ नहीं किया है। सितंबर में घाटशिला में उनका कार्यक्रम होना था, लेकिन तबीयत खराब होने के कारण उसे रद्द कर दिया गया।
घाटशिला का यह उपचुनाव मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला उपचुनाव है। इसलिए इसे सरकार की लोकप्रियता और नीतिगत साख से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, “कोल्हान टाइगर” कहे जाने वाले चंपाई सोरेन के लिए यह मुकाबला उनके राजनीतिक प्रभाव की कसौटी होगा।
ऐसे में घाटशिला की यह लड़ाई सिर्फ एक सीट तक सीमित नहीं है — यह झारखंड की राजनीतिक दिशा तय करने वाला अहम मोड़ साबित हो सकता है।
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