सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को कहा कि खनन संचालकों द्वारा केंद्र सरकार को दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर(Tax) नहीं है और राज्यों को खनन तथा खनिज-उपयोग गतिविधियों पर उपकर(sab tax) लगाने का अधिकार है।
यह फैसला कोर्ट ने खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण आदि बनाम भारतीय इस्पात प्राधिकरण एवं अन्य पर सुनवाई करते हुए दिया। इस फैसले से ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को लाभ होगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया, जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय , अभय एस ओका , बीवी नागरत्ना , जेबी पारदीवाला , मनोज मिश्रा , उज्जल भुइयां , सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत से असहमति जताई।
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम (खान अधिनियम) राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति से वंचित नहीं करेगा।
उपरोक्त निष्कर्षों के मद्देनजर, न्यायालय ने इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में 1989 के अपने फैसले को खारिज कर दिया ।
बहुमत का फैसला पढ़ते हुए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा:- “रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है… हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इंडिया सीमेंट्स के निर्णय में यह कहा गया है कि रॉयल्टी कर है, जो गलत है… सरकार को किए गए भुगतान को केवल इसलिए कर नहीं माना जा सकता क्योंकि कानून में बकाया के रूप में इसकी वसूली का प्रावधान है।” (TOI)