लद्दाख में संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष राज्य के दर्जे की मांग लंबे समय से उठ रही है। पर्यावरणविद् और समाजसेवी सोनम वांगचुक ने हाल ही में लद्दाख के लोगों से गांधीवादी, अहिंसक तरीक़े से अपने आंदोलन को जारी रखने की अपील की है। उन्होंने यह भी कहा है कि जब तक 24 सितंबर को हुए हिंसक प्रदर्शन, जिसमें चार लोगों की मृत्यु हुई, की स्वतंत्र न्यायिक जांच नहीं होती, तब तक वे जेल में रहने को तैयार हैं।
लद्दाख के लोग यह दर्जा इसलिए चाहते हैं ताकि उनकी जनजातीय पहचान, संस्कृति, भूमि और संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। छठी अनुसूची के तहत क्षेत्र को अधिक स्वायत्तता और स्थानीय शासन का अधिकार मिलता है, जिससे स्थानीय मुद्दों का समाधान ज़मीनी स्तर पर किया जा सकता है। 2019 में जब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, तब लोगों को उम्मीद थी कि उन्हें विकास के साथ-साथ राजनीतिक संरक्षण भी मिलेगा। लेकिन समय के साथ उन्हें यह महसूस हुआ कि बिना विधायी अधिकारों के वे निर्णय प्रक्रिया से वंचित हैं।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मत है कि छठी अनुसूची का प्रावधान केवल पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बनाया गया था, और इसे लद्दाख पर लागू करना संवैधानिक रूप से जटिल हो सकता है। फिर भी, लद्दाख की भौगोलिक, सांस्कृतिक और जनजातीय विशेषताओं को देखते हुए यह मांग वाजिब मानी जा रही है।
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