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जनजातीय गौरव दिवस: धरोहर, संघर्ष और समृद्धि का उत्सव

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हर वर्ष 15 नवंबर को भारत में जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। यह दिन न केवल हमारे जनजातीय नायकों की वीरगाथा को सम्मानित करने का प्रतीक है, बल्कि उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, अद्वितीय परंपराओं और संघर्षों का उत्सव भी है। इसके साथ ही, 15 नवंबर 2000 का दिन झारखंड के इतिहास में विशेष स्थान रखता है, जब यह भारत का 28वां राज्य बना।

झारखंड – भगवान बिरसा मुंडा का सपना

झारखंड राज्य का गठन जनजातीय समुदायों के लंबे संघर्ष का परिणाम था। यह उनके अधिकारों, पहचान और विकास के प्रति समर्पण का प्रतीक है। बिरसा मुंडा, ने जल, जंगल और जमीन के अधिकार के लिए संघर्ष किया। उनका सपना था एक ऐसा समाज, जहां जनजातीय समुदायों को उनके अधिकार मिले और उनकी संस्कृति फले-फूले। झारखंड का गठन उसी सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम था।

‘धरती आबा’ के संघर्ष और शौर्य की गाथा

जनजातीय समुदायों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भगवान बिरसा मुंडा, जिनकी जयंती के उपलक्ष्य में यह दिवस मनाया जाता है, ने अपने छोटे से जीवन में अन्याय और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया। वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थे, जिन्होंने जनजातीय समाज को अपने अधिकारों के लिए जागरूक किया।
भारत के आदिवासी समुदायों ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजते हुए देश के विकास और स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। ‘धरती आबा’ कहे जाने वाले बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाई। आज उनकी अमिट छवि आदिवासी स्वाभिमान और संघर्ष का प्रतीक बन गई हैं।

जनजातीय दिवास पर प्रधानमंत्री का बिहार दौरा

इस बार की जनजातीय गौरव दिवस की सबसे बड़ी खासियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार दौरा रहा। जमुई में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने जनजातीय समुदायों की विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की। उन्होंने अपने भाषण में कहा, “जनजातीय समुदाय हमारे देश की आत्मा हैं। उनकी कहानियां हर भारतीय के दिल में जिंदा रहनी चाहिए। आजादी का सारा श्रेय केवल एक परिवार का नही है। इसमें आदिवासियों द्वारा दी गई आहुति को कोई नहीं भूला सकता।” इस अवसर पर उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके आदर्शों पर चलने का आह्वान किया।

सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव

जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक विविधता अद्भुत है। उनके लोकगीत, नृत्य, और हस्तशिल्प भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं। चाहे झारखंड का सरहुल पर्व हो, या ओडिशा का धनु यात्रा, हर त्योहार में प्रकृति और जीवन के प्रति उनका सम्मान झलकता है।

जनजातीय गौरव दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संदेश है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की आत्मा उसकी विविधता में बसती है। यह दिन हमें जनजातीय समुदायों की धरोहर को संरक्षित करने और उनके संघर्षों से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करता है।


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