भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने आज 2 oct 2024 को चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित सबसे पुराने और गहरे गड्ढे पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। इस गड्ढे को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह अरबों वर्षों से चंद्रमा की सतह के भूवैज्ञानिक रहस्यों को समेटे हुए है।

इस विशेष स्थान पर लैंडिंग के जरिए ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने चंद्रमा की सतह के बारे में कई नए और महत्वपूर्ण जानकारियों की संभावना जताई है। यह गड्ढा, जो लगभग 4.3 अरब साल पुराना माना जाता है, चंद्रमा के सबसे प्राचीन संरचनाओं में से एक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस गड्ढे की गहराई में चंद्रमा के प्रारंभिक दिनों की सामग्री दबी हो सकती है, जिससे चांद के निर्माण और विकास के रहस्यों को समझने में मदद मिलेगी।

चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। इसके रोवर ने लैंडिंग के तुरंत बाद अपने मिशन की शुरुआत की और सतह की जानकारी इकट्ठा करने के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया। इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा के इस पुराने गड्ढे में बर्फ और पानी के अणुओं की भी मौजूदगी हो सकती है, जो भविष्य में चंद्रमा पर मानव बस्तियों के लिए संसाधन के रूप में काम आ सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर ISRO के वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि यह भारत के लिए गर्व का क्षण है। चंद्रयान-3 की सफलता ने एक बार फिर से अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की महत्ता को वैश्विक स्तर पर साबित किया है।

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