उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर झारखंड और हरियाणा तक बच्चों का एक ही मिशन – घरौंदा बनाओ, पूजा कराओ, और दीपावली की मिठाई पाओ!
उत्तर भारत के कई हिस्सों में दीपावली से पहले घरौंदा बनाने की धूम मच जाती है। ये वही घरौंदा है जो मिट्टी का एक छोटा सा घर होता है और इसे बनाने का मकसद भी खास है – लक्ष्मी-गणेश का स्वागत और बच्चों की ‘क्रिएटिविटी’ को मिट्टी में लिपटे हुए देखना। बच्चों का जोश और उनका यह कहना, “हमारा घरौंदा सबसे बेस्ट दिखना चाहिए” इस परंपरा की सुंदरता को और बढ़ा देता है।
एक दरवाज़ा, दो खिड़कियां और दूसरे माले की सीढ़ी
घरौंदा बनाने की पूरी टीम तैयार होती है – कोई मिट्टी लाता है, कोई पानी लाता है, और सजावट की फुल-प्लानिंग होती है। फिर शुरू होती है डिजाइनिंग – एक दरवाजा, दो खिड़कियां और पूरी कोशिश कि घरौंदा मुंबई की मरीन ड्राइव के फ्लैट से कम न लगे! बड़े-बुजुर्ग भी बच्चों को टिप्स देते हैं, “छोटे-छोटे दीये लगाने से अच्छा लगेगा, और लक्ष्मी जी सीधे घर में आएंगी!”
दीपावली के दिन इन घरौंदों में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां स्थापित होती हैं और दीयों की रोशनी से सजावट की जाती है। बच्चों को इस घरौंदा पूजा का सबसे प्यारा हिस्सा मिठाई मिलना लगता है।
यह छोटा सा घरौंदा बनाने का उत्सव न केवल बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़ता है, बल्कि उन्हें टीमवर्क, जिम्मेदारी और धैर्य का सबक भी सिखाता है। तो इस बार अगर उत्तर भारत में दीपावली के आस-पास मिट्टी के घरौंदे दिखें, तो समझ जाएं कि यह परंपरा कितनी प्यारी और आज भी बच्चों की फेवरेट बनी हुई है!
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