रेल दुर्घटनाओं में ट्रेन का पटरी से उतरना (डिरेलमेंट) एक गंभीर समस्या होती है, जो न केवल रेल संचालन को बाधित करती है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा खतरा बन जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब कोई ट्रेन पटरी से उतरती है, तो उसे दोबारा ट्रैक पर कैसे लाया जाता है? यह प्रक्रिया जितनी जटिल होती है, उतनी ही रोमांचक भी। भारतीय रेलवे के पास इस चुनौती से निपटने के लिए विशेषज्ञों की एक प्रशिक्षित टीम और अत्याधुनिक मशीनरी होती है, जो तेजी से काम करते हुए ट्रेन को ट्रैक पर वापस लाने में मदद करती है। इस पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए हमें रेलवे के आपातकालीन प्रबंधन, तकनीकी विशेषज्ञता और भारी-भरकम उपकरणों की कार्यप्रणाली पर नजर डालनी होगी।
भारी भारी लगती हैं मशीनें
जब भी किसी ट्रेन के पटरी से उतरने की घटना होती है, तो सबसे पहले रेलवे की आपदा प्रबंधन टीम को इसकी सूचना दी जाती है। यह टीम तुरंत घटनास्थल पर पहुंचती है और सबसे पहले यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का कार्य करती है। ट्रेन को दोबारा ट्रैक पर लाने के लिए भारतीय रेलवे के पास कई अत्याधुनिक मशीनें और तकनीक उपलब्ध हैं। सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों में हाइड्रोलिक क्रेन, जैकिंग सिस्टम और रेल-पुलर शामिल होते हैं। यदि ट्रेन के कोच आंशिक रूप से पटरी से उतरे हों, तो जैक और रेल-पुलर का इस्तेमाल करके उन्हें धीरे-धीरे उठाया जाता है और वापस ट्रैक पर रखा जाता है। लेकिन अगर ट्रेन का इंजन या कोच पूरी तरह पलट गया हो, तो हाइड्रोलिक क्रेन का उपयोग किया जाता है।
हाइड्रोलिक क्रेन अत्यधिक भारी-भरकम कोच और इंजन को उठाने में सक्षम होती है। इन क्रेनों की मदद से ट्रेन के डिब्बों को धीरे-धीरे उठाया जाता है और पटरी के ऊपर लाया जाता है। इस दौरान रेलवे ट्रैक की भी जांच की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ट्रैक दोबारा ट्रेन के भार को संभालने के लिए सुरक्षित है। कई बार, दुर्घटना के कारण ट्रैक भी क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिसे पहले ठीक किया जाता है और फिर ट्रेन को पटरी पर लाया जाता है।
कैसे पटरी पर वापस आती है ट्रेन?
पटरी से उतरे डिब्बों को ट्रैक पर वापस लाने की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है। सबसे पहले, लटके हुए या पलटे हुए डिब्बों को स्थिर किया जाता है ताकि वे और ज्यादा न हिलें। इसके बाद, हाइड्रोलिक जैक की मदद से ट्रेन के पहियों को धीरे-धीरे ऊपर उठाया जाता है और उन्हें सही स्थिति में लाया जाता है। यदि ट्रेन पूरी तरह पटरी से उतर गई हो, तो हाइड्रोलिक क्रेन और अन्य भारी मशीनों की सहायता से उसे उठाकर पटरी पर रखा जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, इंजीनियर हर छोटे-से-छोटे पहलू पर नजर रखते हैं। यदि किसी कोच के पहियों को ठीक से पटरी पर नहीं रखा गया, तो वह दोबारा डिरेल हो सकता है, जिससे और भी अधिक समस्या हो सकती है। इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाता है कि ट्रेन पूरी तरह संतुलित और सुरक्षित तरीके से वापस ट्रैक पर लाई जाए।
रेलवे पटरियों की होती है जांच
ट्रेन को पटरी पर लाने के बाद, रेलवे की विशेष टीम ट्रैक की स्थिति का मूल्यांकन करती है। कई बार दुर्घटना की वजह से पटरियां मुड़ जाती हैं या टूट जाती हैं, जिससे उन्हें दोबारा बिछाना पड़ता है। अगर ट्रैक को भारी नुकसान हुआ है, तो अस्थायी रेल लाइन बिछाकर रेल यातायात को जल्द से जल्द बहाल करने का प्रयास किया जाता है।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि उनकी प्राथमिकता दुर्घटनाग्रस्त ट्रैक को जल्दी से ठीक करके रेल सेवाओं को फिर से शुरू करना होता है। यात्रियों को होने वाली असुविधा को कम करने के लिए रेलवे प्रशासन दिन-रात काम करता है ताकि यातायात सामान्य हो सके।
ट्रेन का पटरी से उतरना न केवल रेलवे के लिए बल्कि यात्रियों के लिए भी एक बड़ी चिंता का विषय होता है। लेकिन भारतीय रेलवे की कुशल इंजीनियरिंग टीम और अत्याधुनिक मशीनरी इस चुनौती को तेजी से हल करने में सक्षम हैं। एक सुव्यवस्थित योजना, आधुनिक उपकरणों और विशेषज्ञों की मेहनत से ट्रेन को जल्द से जल्द दोबारा ट्रैक पर लाया जाता है। अगली बार जब आप किसी ट्रेन के डिरेलमेंट की खबर सुनें, तो समझ लीजिए कि उसके बाद एक हाई-टेक रेस्क्यू मिशन शुरू हो चुका है, जो बिना रुके काम करता है ताकि ट्रेन फिर से अपनी पटरी पर लौट सके और सफर जारी रहे!
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