गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए वाराणसी में मुस्लिम महिलाओं ने प्रभु श्रीराम की आरती उतार कर सामाजिक सौहार्द्र और आपसी प्रेम का अनूठा संदेश दिया। इस ऐतिहासिक कदम ने एक बार फिर यह साबित किया कि भारत की विविधता में एकता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
यह आयोजन वाराणसी के एक सामुदायिक केंद्र में हुआ, जहां विभिन्न समुदायों की महिलाओं ने भाग लिया। खास बात यह रही कि मुस्लिम महिलाओं ने न केवल प्रभु श्रीराम की आरती उतारी, बल्कि ‘जय श्रीराम’ के जयघोष के साथ कार्यक्रम में भागीदारी निभाई। उन्होंने पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर आरती की थाल सजाई और भक्ति भाव से आरती उतारी। इस दौरान रामचरितमानस के दोहे और भजन भी गाए गए।
महिलाओं ने क्या कहा?
आयोजन में शामिल महिलाओं का कहना था कि प्रभु श्रीराम केवल एक धर्म के नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के प्रतीक हैं। एक मुस्लिम महिला ने कहा, “हमारी आस्था इंसानियत में है। जब सभी धर्म प्रेम और भाईचारे की बात करते हैं, तो हमें भी एक-दूसरे के पर्व और परंपराओं में भाग लेना चाहिए।”
स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संगठनों ने इस पहल की सराहना की और कहा कि ऐसे आयोजनों से समाज में नफरत की दीवारें गिरती हैं और एकता मजबूत होती है। धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को अपनाकर ही सशक्त भारत का निर्माण संभव है।
यह आयोजन उन तमाम लोगों के लिए एक सकारात्मक संदेश है जो समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं। वाराणसी की इन मुस्लिम महिलाओं ने यह दिखा दिया कि भारत में मोहब्बत अब भी ज़िंदा है, बस ज़रूरत है उसे अपनाने की।
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