झारखंड: हजारीबाग जिले में एक गिद्ध पकड़ में आया है। पकड़े गए गिद्ध के पीठ पर ट्रैकिंग डिवाइस लगा है जो सैटेलाइट से जुड़ता है।

हजारीबाग: यह गिद्ध विष्णुगढ़ के कुणाल डैम में मिला है। तेजी से ये खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई। यह गिद्ध लोगों के चर्चा का विषय बन चुकी है। लोगों का यह कहना है की हजारीबाग में मिला ये जासूसी गिद्ध काफी थकी हुई अवस्था में लग रहा था।

यहां के लोग कहते हैं कि इस गिद्ध पर एक डिवाइस लगा है जो बांग्लादेश का बना हुआ है और गिद्ध के पैर पर लगी रिंग जिस पर बांग्लादेश की राजधानी ढाका का नाम और एक नंबर लिखा हुआ है। उसे विष्णुगढ़ में सुरक्षित रख उसपे लगे ट्रैकिंग डिवाइस और रिंग के बारे में जानकारी इकट्ठा की जा रही है।

एसपी अरविंद सिंह ने कहा की डिवाइस लगे गिद्ध के बारे में जानकारी मिलते ही पुलिस इसकी जांच में लग गई है। पुलिस से रिपोर्ट की भी मांग की गई है। सेव एशियन वल्चर फ्रॉम एक्सटिशन के सदस्य डॉ. सत्यप्रकाश का कहना है की गिद्ध काफी लंबी यात्रा तय करके हजारीबाग पहुंचा है। इसलिए यह थके होने के साथ साथ काफी बीमार भी है। हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल के अधिकारी ने यह जानकारी दी है की गिद्ध पर बांगलादेश का सोलर रेडियो कॉलर लगाया गया है।

मुरारी सिंह ने लोकल 18 झारखंड इन चर्चाओं पर विराम लगाते हुए कहा की गिद्ध पर लगा हुआ उपकरण एक ट्रैकिंग डिवाइस है जो सैटेलाइट से जुड़ा है। आरएसबीपी (रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स) एक ब्रिटिश संस्था है जो पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करती है। यह भारत में बीएनएस (बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी) के साथ मिलकर काम कर रही है। यह ट्रैकर डिवाइस बांग्लादेश के खुलना में इन दोनों संस्थाओं द्वारा लगाया गया था। हजारीबाग गिद्धों का निवास स्थान है।  इस उपकरण का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जा रहा था कि गिद्ध प्रवास के दौरान किन-किन स्थानों पर जाती है। भोजन की तलाश में इनका क्षेत्र कहां तक फैला हुआ है, इसका पता लगाने के लिए यह ट्रैकर लगाया गया था। मुरारी सिंह ने इस मामले को लेकर संस्था से भी बात की है। उन्होंने बताया कि वह बांग्लादेश से खड़कपुर और धनबाद होते हुए हजारीबाग पहुंचे हैं। संस्था का कहना है कि अगर यह पक्षी कहीं दिखाई दे तो कृपया संपर्क करें। मुरारी सिंह का कहना है कि यह एक अफवाह है कि इस ट्रैकर का इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जा रहा था जो की सरासर गलत है। हाल के दिनों में भारत में पंछियों की पहचान और गिनती के लिए उनके पैरों में चिह्न लगाए गए हैं।

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