Manipur में पिछले कुछ महीनों से जारी राजनीतिक अस्थिरता और जातीय हिंसा के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे के बाद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर भाजपा में असहमति देखने को मिली, क्योंकि अब तक पार्टी नए मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं कर पाई थी। भाजपा के पूर्वोत्तर मामलों के प्रभारी संबित पात्रा ने राज्य के विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें कीं, लेकिन सहमति नहीं बन सकी। इसी गतिरोध के चलते केंद्र सरकार ने गुरुवार को Manipur राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला लिया।
Manipur: विधानसभा सत्र रद्द होने का असर
राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने 10 फरवरी से प्रस्तावित विधानसभा सत्र को पहले ही रद्द कर दिया था, जिससे Manipur संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा था। संविधान के अनुच्छेद 174(1) के तहत, विधानसभा का सत्र छह महीने के भीतर बुलाना अनिवार्य होता है, लेकिन मणिपुर विधानसभा का पिछला सत्र 12 अगस्त 2024 को हुआ था।
इसके चलते 12 फरवरी 2025 तक नया सत्र बुलाया जाना जरूरी था, लेकिन भाजपा की आंतरिक खींचतान के चलते ऐसा नहीं हो सका। सत्र न बुलाने की स्थिति में राज्य सरकार का संचालन संविधान के अनुरूप संभव नहीं था, जिसके आधार पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला लिया।
जातीय हिंसा पर बनीं हुई हैं चिंताएं
मणिपुर में मई 2023 से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा जारी है, जिसमें अब तक 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। इस हिंसा के चलते राज्य में सुरक्षा की स्थिति गंभीर बनी हुई है, और इसे नियंत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हिंसा पर नियंत्रण न कर पाना भी बीरेन सिंह के इस्तीफे की प्रमुख वजहों में से एक रहा। केंद्र सरकार को आशंका थी कि यदि जल्द कोई स्थिर प्रशासनिक व्यवस्था नहीं बनी तो हालात और बिगड़ सकते हैं, जिसके चलते राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
विपक्ष ने कही ये बात…
भाजपा के भीतर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर मतभेद स्पष्ट रूप से सामने आए। मुख्यमंत्री पद के लिए कई नाम चर्चा में रहे, लेकिन विधायकों के बीच सहमति नहीं बन पाई। कुछ विधायकों का मानना था कि अंतिम निर्णय केंद्रीय नेतृत्व को लेना चाहिए, जबकि कुछ नए मुख्यमंत्री के चयन में स्थानीय नेताओं की अधिक भागीदारी चाहते थे। दूसरी ओर, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भाजपा पर राजनीतिक असफलता का आरोप लगाया है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने लंबे समय तक बीरेन सिंह को पद पर बनाए रखा, जबकि राज्य हिंसा और अराजकता से जूझ रहा था। उन्होंने प्रधानमंत्री से मणिपुर जाकर हालात का जायजा लेने और ठोस समाधान पेश करने की मांग की।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य की सभी प्रशासनिक शक्तियां केंद्र सरकार के अधीन आ जाएंगी और राज्यपाल अब सरकार के प्रमुख के रूप में काम करेंगे। विधानसभा को या तो निलंबित किया जाएगा या भंग कर दिया जाएगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा कब तक नए मुख्यमंत्री का चयन कर पाती है और राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं। वहीं, केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती मणिपुर में शांति बहाल करना और प्रशासनिक स्थिरता सुनिश्चित करना होगा। राज्य में हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए आने वाले दिनों में और भी बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।
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