पड़ोसियों का रिश्ता बड़ा ही दिलचस्प होता है – नजदीकी का ऐसा रिश्ता, जो कभी आपको मदद का हाथ बढ़ाने पर मजबूर करता है, तो कभी उनकी अजीबोगरीब मांगों पर सिर खुजलाने पर। एक खास तरह के पड़ोसी होते हैं, जो मानो आपके घर को एक एक्सटेंशन मान लेते हैं। उनके लिए चाय की पत्ती, चीनी, मक्खन, और यहां तक कि बिजली के उपकरण भी, सबकुछ मानो आपके पास हमेशा ‘इमरजेंसी’ के लिए मौजूद होते हैं।

चाय की पत्ती का इमरजेंसी कॉल

सुबह-सुबह की बात हो, या रात के वक्त की, किसी भी समय आपके दरवाजे पर हल्की सी दस्तक होती है। दरवाजा खोलते ही सामने वही परिचित चेहरा, वही सवाल – “भैया, चाय की पत्ती मिल जाएगी?” अब आप समझ जाते हैं कि एक बार फिर चाय की पत्ती का ‘इमरजेंसी कॉल’ आ गया है। और यह एक बार की बात नहीं होती, यह सिलसिला ऐसा होता है कि धीरे-धीरे आपके और उनके घर की सीमाएं धुंधली पड़ने लगती हैं। आप खुद सोचने लगते हैं कि कहीं आप ही तो अपने घर की पत्ती उनके घर से लेकर नहीं आ रहे!

मक्खन और चीनी के साथ भी ऐसी ही कहानी होती है। मक्खन के लिए उनकी नजाकत भरी आवाज़, “थोड़ा सा मक्खन मिल जाएगा?” और साथ में उस समय का ज़िक्र भी, जब आपने उनसे कुछ मांगा था—जो कि आपको याद भी नहीं रहता। मक्खन, चीनी, और अन्य ‘मिठास’ की चीजें इस तरह से आपके घर से गायब होती हैं कि आपको खुद समझ में नहीं आता कि आपके घर का सामान कहाँ जा रहा है। लेकिन पड़ोसी इस प्रक्रिया को इतना सहज बना देते हैं कि आप भी इसे जीवन का हिस्सा मान लेते हैं।

कभी सब्जियां, कभी नमक –  सब चलता है

सब्जियों का उधार मांगने का तरीका भी अनोखा होता है। “भाभी, प्याज खत्म हो गया है, ज़रा दे देंगी?” इस ‘ज़रा’ शब्द में जितनी मासूमियत छिपी होती है, उतनी ही तेज़ी से आपकी सब्जियां गायब होने लगती हैं। आलू, टमाटर, और हरी मिर्च जैसी चीजें तो मानो उनके लिए रोजमर्रा का सौदा हो गई हैं। कभी-कभी तो वे खुद भी नहीं जानते कि उन्हें कितना चाहिए, और आप सोचते रह जाते हैं कि ‘थोड़ा सा’ आखिर कितना होता है।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता। बिजली के उपकरण जैसे मिक्सर, टोस्टर, और प्रेस भी इस ‘मांगने वाले’ पड़ोसी की लिस्ट में शामिल हो जाते हैं। “भाईसाहब, मिक्सर उधार मिल सकता है? बस दो-तीन बार इस्तेमाल कर लेंगे।” आप सोचने लगते हैं कि अगर पड़ोसियों की मांगें इसी तरह बढ़ती रहीं, तो शायद किसी दिन आपके घर का दरवाजा भी मांग लें!

खैर, अब तो ज़माना बदल रहा लोग बदल रहे और बदल रही है भारतीय संस्कृति जहां न कोई किसी को पूछने वाला है और न किसी से कोई कुछ मांगने वाला। लोग तो अब पड़ोसी से बैठ कर बात करने की भी जहमत नहीं उठाते। अब न तो फोन की वजह से हाल चाल पूछी जाती हैं और न हीं सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त बातें क्योंकि अब कमरा बस एक बटन दबाने की दूरी पर है। दरवाज खुलते ही आप अपनी घर के दरवाज़े के पास होंगें। लेकिन इन पड़ोसियों के बिना मजा फीका पड़ता जा रहा है।

इन पड़ोसियों की आदतें कभी-कभी हंसी का कारण बनती हैं, तो कभी खीज का। लेकिन एक बात तो तय है, इनके बिना आपकी जिंदगी में वह हलचल, वह मजा कहां से आएगा? यह उधार मांगने की प्रवृत्ति, चाहे जितनी भी अजीब हो, हमारे सामाजिक रिश्तों का एक अनिवार्य हिस्सा है। और कहीं न कहीं, इसी के कारण पड़ोसियों का रिश्ता इतना खास और दिलचस्प बन जाता है।


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By Sumedha