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रॉकेट लॉन्च से अंतरिक्ष पर्यावरण पर मंडरा रहा नया संकट

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अंतरिक्ष उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। पिछले 15 वर्षों में, प्रति वर्ष लॉन्च किए गए रॉकेटों की संख्या लगभग तीन गुना हो गई है, और ग्रह की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों की संख्या दस गुना बढ़ गई है। पिछले 10 वर्षों में अंतरिक्ष मलबे पुराने उपग्रहों और खर्च किए गए रॉकेट चरणों की पृथ्वी पर वापस गिरने की मात्रा दोगुनी हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अब हर साल कुछ सौ टन पुराना अंतरिक्ष कबाड़ वायुमंडल में वाष्पीकृत हो जाता है ।


आधुनिक और वर्तमान रॉकेट जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) का उपयोग करते हैं, जो कालिख (soot) बनाते हैं जो सारी गर्मी को अवशोषित करते हैं और पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडलीय तापमान को बढ़ाते हैं। सैटेलाइट जलने के कारण एल्युमीनियम ऑक्साइड (aluminium oxide) का स्तर बढ़ रहा है, जिससे ग्रह का तापीय संतुलन बिगड़ सकता है। कालिख  और अल्यूमिनियम ऑक्साइड  ओजोन (ozone) को नष्ट कर देते हैं, (प्राकृतिक गैस जो हमें पराबैंगनी प्रकाश (ultraviolet rays) से बचाती है ।


और ये सब तो बस शुरुआत है |अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ के पास 1मिलियन उपग्रह स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन दर्ज़ किए गए हैं | हालांकि उन सभी योजनाओं के सफल होने की संभावना कम है | विशेषज्ञों के अनुसार इस दशक के अंत तक लगभग 100,000 अंतरिक्ष यान पृथ्वी का चक्कर लगा सकते हैं। वार्षिक आधार पर वायुमंडल में जलने वाले अंतरिक्ष कबाड़ की मात्रा 3,300 टन (3,000 मीट्रिक टन) से अधिक तक पहुंचने की संभावना  है। 
विशेषज्ञों ने यह भी संकेत दिया कि धातु की राख, जो वर्तमान में उपग्रह के पुनः प्रवेश के कारण समताप मंडल में बन रही है, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकती है और समय के साथ इसे कमजोर कर सकती है, जिससे अधिक ब्रह्मांडीय विकिरण ग्रह की सतह तक पहुंच सकता है।

रॉकेट उड़ानों और उपग्रह वायु प्रदूषण के वायुमंडलीय प्रभावों पर शोध अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है | साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में अंतरिक्ष विज्ञान के एक एसोसिएट प्रोफेसर Munkwan Kim ने कहा कि “अगर अभी या अगले पांच वर्षों तक हम कोई विशेष कार्यवाई नहीं करते हैं तो बहुत देर हो सकती है।”

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