लोकल बाजार का अघोषित नियम, बल्ले-बल्ले कर नाच रहे छोटे व्यापारी!

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बसंत पंचमी के अवसर पर बाजारों में ऐसा नज़ारा देखने को मिला, मानो छोटे व्यापारियों की क़िस्मत ही चमक गई हो। फूल बेचने वाले हों, फल विक्रेता, मूर्तिकार, अगरबत्ती और दीया विक्रेता या फिर पूजा सामग्री बेचने वाले – हर किसी की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ी। इस बार सरस्वती पूजा दो दिनों तक मनाई जा रही है, जिससे स्थानीय व्यापारियों को जबरदस्त लाभ हुआ है।

हालांकि, बड़े-बड़े ब्रांड्स त्योहारी सीज़न में मुनाफ़ा बटोरते हैं, लेकिन सरस्वती पूजा ऐसा त्योहार है, जहां लोकल बाजार की भूमिका सबसे बड़ी होती है। छोटे दुकानदारों के लिए यह दिन किसी दिवाली से कम नहीं रहा। पूजा की हर सामग्री—फूल, फल, मूर्तियां, दीये, अगरबत्तियां, पीले वस्त्र और मिठाइयां—स्थानीय बाजारों से ही खरीदी जाती हैं। इससे न केवल हज़ारों लोगों को रोज़गार मिला, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बूस्ट मिला।

गली-गली में सजी फूलों की दुकानों पर गेंदे, गुलाब, बेला और कमल की बिक्री देखते ही बन रही थी। वहीं, मूर्तिकारों की मेहनत भी रंग लाई। हर गली-मोहल्ले में देवी सरस्वती की विभिन्न आकार-प्रकार की मूर्तियां बिक रही थीं, जिनकी कीमत भी इस बार अच्छी खासी रही।

दाम बढ़े, फिर भी खरीदारों की भीड़

त्योहार का मतलब सिर्फ़ भक्ति नहीं, बल्कि मुनाफ़े का सीज़न भी होता है। पूजा के इस अवसर पर लगभग हर चीज़ की कीमत बढ़ गई। फूलों के दाम 30-40% तक बढ़े, मूर्तियों की कीमतें दोगुनी हो गईं, और पूजा सामग्री के विक्रेताओं ने भी अवसर का पूरा लाभ उठाया। फल विक्रेताओं ने केले, सेब और अनार की कीमतों में इज़ाफ़ा कर दिया, जबकि मिठाई की दुकानों ने खोये और सूखे मेवों की महंगाई का बहाना बनाकर दाम बढ़ा दिए। सरस्वती पूजा में सबसे ज्यादा बिकने वाले पीले कपड़ों के दाम भी आसमान छू गए, लेकिन खरीदारों ने फिर भी झोली भरकर खरीदारी की।

इस पूजा में बड़े शोरूम या मॉल का कोई योगदान नहीं रहा। सारा मुनाफा छोटे और मध्यमवर्गीय व्यापारियों के हिस्से आया। कुम्हारों को दीयों की भारी डिमांड मिली, तो फूल विक्रेताओं का स्टॉक खत्म होने लगा। वहीं, हाथ से बनी मिट्टी की मूर्तियों ने प्लास्टिक की बनी मूर्तियों को बाज़ार से बाहर कर दिया। मिट्टी के दीये और हाथ से बनी अगरबत्तियां भी खूब बिकीं, जिससे कारीगरों और छोटे व्यापारियों के चेहरे खिल उठे।

त्योहार के बहाने महंगाई का खेल!

हर त्योहार पर महंगाई बढ़ाने का खेल चलता है, और सरस्वती पूजा भी इससे अछूती नहीं रही। दुकानदारों ने दाम बढ़ाए, और ग्राहकों ने खुशी-खुशी जेब ढीली कर दी। यह एक तरह से अघोषित नियम बन चुका है कि त्योहार के मौके पर कीमतें बढ़ाना कानूनी रूप से गलत नज़र नहीं आता। आखिरकार, जब पूरा बाज़ार मुनाफ़ा कमा रहा हो, तो कोई पीछे क्यों रहे?

इस पर्व ने हज़ारों लोगों के लिए रोज़गार के द्वार खोल दिए। फूलों के थोक व्यापारियों से लेकर खुदरा विक्रेताओं तक, मूर्ति बनाने वाले कारीगरों से लेकर पूजा सामग्री बेचने वाले दुकानदारों तक – हर किसी की जेब गरम हुई।

Big market boom on the ocassion of Saraswati puja
Saraswati Puja celebration

गली-मोहल्लों के छोटे दुकानदारों के लिए यह मौका किसी बोनस से कम नहीं रहा। कई ऐसे परिवार जो पूरे साल सीमित आमदनी पर निर्भर रहते हैं, उन्होंने इस मौके पर अच्छी कमाई की और अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत किया। सरस्वती पूजा सिर्फ़ विद्या और ज्ञान का उत्सव नहीं है, बल्कि यह छोटे व्यापारियों के लिए कमाई का सबसे बड़ा मौका भी है। लोकल मार्केट की ताकत इस पर्व में खुलकर देखने को मिलती है, जहां बिना किसी बड़े ब्रांड के हस्तक्षेप के, छोटे दुकानदारों और कारीगरों की मेहनत रंग लाती है।

इस बार सरस्वती पूजा दो दिनों तक मनाने का फायदा सिर्फ़ श्रद्धालुओं को ही नहीं, बल्कि व्यापारियों को भी मिला। बढ़े हुए दामों के बावजूद लोगों ने जी भरकर खरीदारी की, और छोटे व्यापारियों ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया। सच कहा जाए, तो इस पर्व ने न सिर्फ़ विद्या की देवी को प्रसन्न किया, बल्कि छोटे दुकानदारों की समृद्धि का द्वार भी खोल दिया।

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