न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने सोमवार को देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण कर पद संभाल ली है। उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका में नए बदलावों और सुधारों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल न्यायपालिका में न्याय वितरण की प्रक्रिया को और तेज करने और लंबित मामलों को सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित न्यायिक परिवार से संबंध रखने वाले न्यायमूर्ति खन्ना न्याय के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता और निष्पक्षता के लिए जाने जाते हैं। उनके पिता न्यायमूर्ति देव राज खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे, जबकि उनके चाचा, न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना, आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों की रक्षा में लिए गए अपने साहसी फैसलों के लिए आज भी याद किए जाते हैं। ऐसी परिवारिक पृष्ठभूमि ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को न्याय के प्रति विशेष संवेदनशीलता और निष्ठा दी है।
संजीव खन्ना के ऐतिहासिक फैसले
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के करियर में कई ऐसे फैसले शामिल हैं, जिन्होंने भारतीय न्याय व्यवस्था और लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव डाला है। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की वैधता को चुनौती देने वाले मामलों में इसे लोकतंत्र की संजीवनी बताते हुए सुरक्षित रखा। अनुच्छेद 370 की समाप्ति पर भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, चुनावी बॉन्ड योजना पर उठाए गए सवालों को लेकर भी उनका रुख पारदर्शिता और जनहित की ओर रहा। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत प्रदान करना भी उनके कार्यकाल का एक चर्चित फैसला रहा है।
64 वर्ष की आयु में, संजीव खन्ना का ध्यान मुख्य रूप से अदालतों में लंबित मामलों की संख्या को कम करने और न्यायिक प्रक्रिया को और तेज बनाने पर केंद्रित है। उनकी सोच में एक स्पष्टता है कि न्याय जितनी तेजी से हो, उतना ही सटीक हो, जिससे आम नागरिकों का न्यायपालिका पर विश्वास बना रहे।
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