सुप्रीम कोर्ट के संविधानिक पीठ ने (6-1) बहुमत से यह माना की अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा की अनुसूचित जाति श्रेणि के भीतर अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग से कोटा प्रदान किया जाना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि “6 फैसले हैं, सभी एकमत हैं।” इस फैसले ने 2004 के ईवी चिन्नैया (E.V chinnaiah) फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने सुनवाई की। न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई।

संविधानिक पीठ दो पहलुओं पर विचार कर रही थी:

(1) क्या आरक्षित जातियों के साथ उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए, और

(2) E.V chinnaiah बनाम आंद्र प्रदेश, (2005) एससीसी 394 में दिया गए निर्णय की सत्यता, जिसमें कहा गया था की अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित ‘अनुसूचित जातियां’ (SC) एक समरूप समूह हैं और उन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। 

सीजेआई डी.वाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला दिया। साक्ष्यों से पता चलता है कि अनुसूचित जातियां एक समरूप वर्ग नहीं हैं। उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही, उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता है। अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो।


Discover more from The Untold Media

Subscribe to get the latest posts sent to your email.