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बिरसा मुंडा के परपोते मंगल मुंडा का निधन, झारखंड ने खोया अपनी सांस्कृतिक धरोहर का सितारा

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धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के परपोते मंगल मुंडा का शुक्रवार, 29 नवंबर को रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) में निधन हो गया। वे 45 वर्ष के थे। मंगल मुंडा का निधन रात 12:30 बजे “हृदय गति रुकने” (कार्डियोवैस्कुलर फेल्योर) के कारण हुआ।

सड़क दुर्घटना में घायल हुए थे मंगल मुंडा

मंगल मुंडा 25 नवंबर को झारखंड के खूंटी जिले में एक यात्री वाहन की छत से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस हादसे में उन्हें सिर पर गंभीर चोटें आई थीं। पहले उनका इलाज खूंटी के सदर अस्पताल में हुआ, लेकिन हालत बिगड़ने पर उन्हें मंगलवार को RIMS रेफर कर दिया गया।

RIMS के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. हीरन बिरुआ ने बताया, “मंगल मुंडा को वेंटिलेटर पर रखा गया था। हमने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन हृदय गति रुकने के कारण उनका निधन हो गया।”

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने जताया शोक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगल मुंडा के निधन को झारखंड के आदिवासी समाज के लिए बड़ी क्षति बताया। उन्होंने कहा, “मंगल मुंडा के निधन से झारखंड ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खो दिया है।”

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “धरती आबा बिरसा मुंडा के वंशज मंगल मुंडा जी के निधन की खबर से मैं अत्यंत दुखी हूं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दें और उनके परिवार को इस दुखद घड़ी में सहनशक्ति प्रदान करें।”

झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार ने भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा, “मंगल मुंडा का निधन बेहद दुखद है। यह झारखंड के आदिवासी समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।”

मंगल मुंडा की अस्पताल से तस्वीर

उलीहातु में होगा अंतिम संस्कार

मंगल मुंडा का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव उलीहातु में किया जाएगा, जो झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 65 किमी दूर है। यह वही गांव है जहां 15 नवंबर 1875 को बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।

पिछले वर्ष बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उलीहातु का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने कई योजनाओं की शुरुआत की थी और बिरसा मुंडा के योगदान को याद किया था।

झारखंड की धरोहर को सहेजने वाले मंगल मुंडा

मंगल मुंडा बिरसा मुंडा की परंपरा और उनके विचारों को जीवंत रखने वाले एक प्रेरक व्यक्तित्व थे। वे अपने समुदाय और गांव में आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध थे। उनका जीवन आदिवासी समाज के संघर्ष और गौरव का प्रतीक था।

उनके निधन से न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे झारखंड और आदिवासी समाज को अपूरणीय क्षति हुई है। उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।


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